जनजातीय मंत्री का जवाब, ऐसा कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं

दिनांक 12 मार्च 2025

नई दिल्ली। राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह ने भारत सरकार के जनजातीय कार्य मंत्रालय से अतारांकित प्रश्न के माध्यम से एक सवाल पूछा था कि देश में गोंड जनजातीय समुदाय की गोंडी भाषा जिसे “कोइतुर पारसी” के नाम से भी जाना जाता है के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए सरकार द्वारा क्या प्रयास किये जा रहे हैं साथ ही उन्होंने पूछा कि क्या सरकार गोंडी भाषा अर्थात “कोइतुर पारसी” के संरक्षण एवं संवर्धन लेखन एवं प्रशिक्षण के लिए एक अलग संस्था या आयोग गठित करने का विचार कर रही है तथा यदि हां तो इसका गठन कब तक किया जाएगा? सवाल के जवाब में जनजातीय मंत्री दुर्गादास उइके ने तमाम कार्यक्रमों की जानकारी तो दी लेकिन साफ कह दिया कि गोंडी भाषा के लिए पृथक से संस्था या आयोग गठित करने का कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। और उसके गठन करने का प्रश्न ही नहीं उठता।

दिग्विजय सिंह ने कहा कि केंद्र सरकार का रवैया आदिवासियों की भाषाओं के प्रति इसी तरह उदासीन है। सिर्फ मध्यप्रदेश में ही 50 से 60 लाख गोंड आदिवासी गोंडी भाषा का प्रयोग करते हैँ। उन्होंने कहा कि सरकार इन लाखों गोंडी आदिवासियों की भाषा के अस्तित्व को खत्म करना चाहती है जो किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारी हमेशा से मांग रही है की गोंडी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया जाए।

प्रति,

माननीय संपादक महोदय,
ससम्मान प्रकाशनार्थ

द्वारा

कार्यालय

माननीय श्री दिग्विजय सिंह जी
राज्यसभा सांसद,
64 लोधी स्टेट, नई दिल्ली।

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